नमस्कार मित्रों
आशा करता हूँ आप सभी अच्छे होंगे | आज मैंने भी रबिवार की छुट्टी का खूब
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गुरुद्वारा साहिब , गंगटोक
आनंद उठाया | मै प्रति रबिवार देओराली, गंगटोक स्थित श्री गुरुद्वारा साहिब जाता हूँ | मन को असीम शांति प्राप्त होती है | आज वहा प्रार्थना के बाद जब लंगर में पंहुचा तो मेरी भेंट श्रीमान त्सु ग्यालत्सो छेन से हुई | वे पहनावे से ही महात्मा प्रतीत हो रहे थे | जैसा की आज कल चलन में है की आप जैसी पोसाक पहनते हो वैसा ही आपको लोग समझते है | जब मेरी उनसे बात चित शुरू हुई तो मै भाप गया की श्रीमान जी को हिंदी बहुत थोड़ी आती है| उनकी अंग्रेजी अच्छी थी | उन्होंने बताया की उनके पिता चीन से है और माताजी तिब्बत से एवं उनका जन्म सिक्किम में ही हुआ है | अतः वह बचपन से ही यहाँ निवास कर रहे है | बातचीत का सिलसिला ज्यूही बढ़ा हमारे सामने थाली परोसी गयी चूँकि हम पात में बैठे थे तो यह तो होना था | उन्होंने बताया की छुटपन से ही वे गुरुद्वारा आते है | वे श्री गुरुनानक जी को शांति के ईश्वर के रूप में देखते है | मुझे भी बड़ी प्रसन्नता हुई , होती भी क्यों न किसी दूसरे धर्म से समबन्ध रखने वाले लोग अगर अन्य धर्म में आस्था रखे और सर्व धर्म सम भाव की धारणा को माने तो ख़ुशी तो मिलती ही है | प्रसादा(रोटी) थाली में आ चुकी थी | महात्मा जी ने अपने सिर से लगाया और भोजन का श्रीगणेश किया , साथ ही मैंने भी | अभी महात्मा जी की मिनटो में थाली खाली हो गयी | फिर उन्होंने लिया | ये सिलसिला करीब करीब १५ बार चला | प्रसादा आती थालियों में और गायब हो जाती | मै उनके चमत्कार देखता रहा | भोजन देने वाले भक्तजन भी हैरान थे | रोटियां जब भी आती तो गायब हो जाती | मैं तो पास ही बैठा था | मैंने गौर फरमाया तो मई मैं मन ही मन मुस्कुराया |
वो रोटियां लेते उनकी एक टुकड़ी मुँह में डालते और शेष बची रोटियां पास रखे थैली में रखते | मै उन्हें देखता रहा तो वो भाप गए की मैंने उन्हें ऐसा करते देख लिया है |
शेष कल लिखूंगा। .....
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